रायपुर में आदिवासी बच्चों के साथ बर्बरता: सरकारी योजना के तहत लाकर कराया जबरन काम, 10 साल बाद आरोपी महिला गिरफ्तार

सरकारी स्कीम की आड़ में बच्चों को बनाया नौकर, पुलिस ने गाजियाबाद से पकड़ा
रायपुर में एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां सरकारी योजना के नाम पर गरीब और आदिवासी बच्चों को पढ़ाई का लालच देकर उन्हें घरों में काम करने के लिए मजबूर किया गया। ये बच्चे घरेलू नौकरों की तरह बर्तन धोते, खाना बनाते और यहां तक कि महिला के पैर तक दबाते थे। बच्चों के शोषण की इस कहानी ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। इस घिनौने अपराध की मास्टरमाइंड महिला 10 साल तक पुलिस की पकड़ से बचती रही, लेकिन अब उसे गाजियाबाद से गिरफ्तार कर लिया गया है।
कैसे हुआ खुलासा?
इस पूरे मामले की शुरुआत करीब एक दशक पहले हुई थी। सरकारी योजनाओं के तहत गरीब और आदिवासी बच्चों को पढ़ाई और बेहतर जीवन देने की बात कही गई थी। इसी योजना के तहत आरोपी महिला ने कुछ बच्चों को अपने घर में रख लिया। लेकिन वहां पहुंचने के बाद मासूमों को एहसास हुआ कि वे किसी स्कूल में नहीं, बल्कि बंधुआ मजदूरी के जाल में फंस चुके हैं।
बच्चों को सुबह से देर रात तक घर के सारे काम करने पड़ते थे। अगर वे विरोध करते या काम में कोई गलती कर देते, तो उन्हें डांट-फटकार मिलती, कई बार शारीरिक दंड भी दिया जाता। इस दौरान किसी भी बच्चे को स्कूल भेजने की अनुमति नहीं थी।
महीनों तक बच्चों ने यह यातना सही, लेकिन अंततः एक बच्चे ने हिम्मत दिखाई और किसी तरह पुलिस तक अपनी आपबीती पहुंचाई। जब मामला सामने आया, तो पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन आरोपी महिला फरार हो गई और पूरे 10 साल तक पुलिस से बचती रह
बच्चों पर क्या बीती?
बचपन में जिस उम्र में बच्चे खेलने-कूदने और पढ़ाई करने के सपने देखते हैं, उस उम्र में इन मासूमों को चूल्हे के धुएं में खाना बनाना पड़ा। सुबह उठते ही उन्हें झाड़ू-पोछा, बर्तन मांजना, कपड़े धोना और खाना बनाने जैसे काम करने पड़ते थे।
सबसे दर्दनाक बात यह थी कि बच्चों से महिला अपने पैर दबवाती थी। अगर कोई बच्चा थककर बैठ जाता या शिकायत करने की कोशिश करता, तो उसे धमकाया जाता कि बाहर की दुनिया और भी ज्यादा खतरनाक है और कोई उनकी मदद नहीं करेगा।
कुछ बच्चों को जबरदस्ती वापस उनके गांव भेज दिया गया ताकि वे इस अत्याचार की बात किसी को न बता सकें। इस दौरान उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया, ताकि वे चुप रहें।
10 साल बाद गिरफ्तारी कैसे हुई?
पुलिस ने इस केस को काफी समय तक ठंडे बस्ते में डाल दिया था क्योंकि आरोपी महिला लगातार अपनी लोकेशन बदल रही थी। लेकिन जब एक पीड़ित बच्चा बड़ा हुआ और उसने दोबारा हिम्मत जुटाकर पुलिस को बताया कि आरोपी महिला कहां छिपी हो सकती है, तो मामले की जांच फिर से शुरू हुई।
तकनीकी सर्विलांस और मुखबिरों की मदद से पुलिस को पता चला कि महिला गाजियाबाद में रह रही है। तुरंत एक टीम वहां भेजी गई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
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अब आगे क्या होगा?
महिला के खिलाफ कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया है, जिसमें बाल श्रम, मानव तस्करी और बच्चों के शोषण से जुड़े अपराध शामिल हैं। पुलिस अब उससे पूछताछ कर रही है कि क्या इस पूरे नेटवर्क में और लोग भी शामिल थे।
इस घटना से यह साफ हो गया है कि गरीब और आदिवासी बच्चों के शोषण की घटनाएं अब भी जारी हैं और सरकारी योजनाओं का फायदा उठाकर कई अपराधी मासूम बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं।
अब देखना होगा कि इस केस में अदालत क्या फैसला सुनाती है और पीड़ित बच्चों को इंसाफ कब तक मिलता है। लेकिन इतना जरूर है कि इस घटना ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है और यह एक बड़ा सबक बन सकती है कि कैसे सरकारी योजनाओं की सही निगरानी होनी चाहिए ताकि
कोई और मासूम इस तरह से शोषण का शिकार न हो।
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