छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग में फर्जी नौकरी का बड़ा खुलासा: 18 साल तक फर्जी दस्तावेजों से नौकरी, शासन ने दिए जांच के आदेश उपसंचालक योगेश शिव हरे की भूमिका संदेह के घेरे में..

Big revelation of fake job in Chhattisgarh education department: 18 years of fake documents job, government ordered investigation छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग में फर्जी नौकरी का बड़ा खुलासा: 18 साल तक फर्जी दस्तावेजों से नौकरी, शासन ने दिए जांच के आदेश

May 24, 2025 - 14:21
May 24, 2025 - 14:32
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छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग में फर्जी नौकरी का बड़ा खुलासा: 18 साल तक फर्जी दस्तावेजों से नौकरी, शासन ने दिए जांच के आदेश उपसंचालक योगेश शिव हरे की भूमिका संदेह के घेरे में..

छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग में फर्जी नौकरी का बड़ा खुलासा: 18 साल तक फर्जी दस्तावेजों से नौकरी, शासन ने दिए जांच के आदेश

नीना शिवहरे पर 18 वर्षों तक फर्जी नियुक्ति से वेतन लेने का आरोप, पति योगेश शिवहरे भी घोटाले में फंसे

दुर्ग/रायपुर छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 18 वर्षों तक नौकरी करने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। आरोप है कि श्रीमती नीना शिवहरे ने वर्ष 2006 में जबलपुर से अनुमोदन पत्र के जरिए दुर्ग स्थित तुलाराम आर्य कन्या उत्तर माध्यमिक शाला में अवैध रूप से नौकरी प्राप्त की और लंबे समय तक वेतन लेती रहीं। मामले के प्रकाश में आने के बाद शासन ने सख्त कार्रवाई के संकेत दिए हैं।

धमकी और दबाव से मिली फर्जी नियुक्ति

सूत्रों के अनुसार, नीना शिवहरे ने अपने पति योगेश शिवहरे की प्रभाव और दबाव के चलते स्कूल में नियुक्ति प्राप्त की। योगेश शिवहरे उस समय शिक्षा विभाग में उप संचालक के पद पर थे। इस फर्जी नियुक्ति का भांडा तब फूटा जब दस्तावेजों की जांच और सत्यापन के दौरान अनियमितताएं सामने आईं।

शासन ने दिया जांच का आदेश, पेंशन और वेतन पर रोक

घटना की गंभीरता को देखते हुए शासन ने तुरंत:

नीना शिवहरे की पूरी सेवा अवधि की जांच के आदेश जारी किए,

योगेश शिवहरे की पेंशन और वित्तीय लाभों पर रोक लगा दी गई है,

साथ ही नीना शिवहरे से फर्जी नौकरी के दौरान ली गई राशि की वसूली की भी बात कही गई है।

प्रमुख अधिकारियों की सख्त प्रतिक्रिया

छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने स्वयं इस प्रकरण पर संज्ञान लेते हुए कहा:

> “यदि यह मामला सत्य पाया गया, तो फर्जी तरीके से ली गई पूरी राशि की वसूली की जाएगी और दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होगी।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जांच पूरी होने तक किसी भी प्रकार की आर्थिक रियायत या पेंशन भुगतान नहीं किया जाएगा।

क्यों है यह मामला महत्वपूर्ण?

यह प्रकरण इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि यह शासन के नाक के नीचे वर्षों तक चलती रही फर्जी नियुक्तियों और घोटालों की एक झलक देता है। शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग में इस प्रकार की धोखाधड़ी सिर्फ वित्तीय नुकसान नहीं, बल्कि नैतिक और प्रशासनिक गिरावट का संकेत भी है।

छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग में नीना शिवहरे द्वारा 18 वर्षों तक फर्जी नौकरी करने का मामला व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े करता है। यदि जांच में आरोप साबित होते हैं, तो यह राज्य में नौकरी घोटालों के खिलाफ एक मिसाल बन सकता है।

उपसंचालक डॉ योगेश शिवहरे की पूरी कहानी पर नजर डालें तो गड़बड़ झाला है

1. यदि किसी व्यक्ति की 1994 में प्राचार्य (Principal) पद पर पहली नियुक्ति हुई होती, तो वे आज निदेशक (Director) पद से सेवानिवृत्त हो चुके होते।

इसका तात्पर्य है कि उक्त व्यक्ति को 1994 से ही प्राचार्य माना गया है, और उस आधार पर उनकी पदोन्नति की यात्रा आगे बढ़ाई गई है।

2. उस समय प्राचार्य पद के लिए दो प्रकार की पात्रता होती थी –

विभागीय पदोन्नति (Departmental Promotion): जिसके लिए 10 वर्षों का अनुभव अनिवार्य था।

पीएससी (लोक सेवा आयोग) के माध्यम से सीधी भर्ती: जिसमें न्यूनतम 5 वर्षों का अनुभव आवश्यक था।

मुख्य बात: संबंधित व्यक्ति उपरोक्त दोनों ही मानदंडों को उस समय पूरा नहीं करते थे।

3. विभाग के पास इस बात का कोई अभिलेख (record) नहीं है कि 1994 से पहले यह व्यक्ति कहां नियुक्त था।

इसका अर्थ है कि 1994 में प्राचार्य बनने के लिए आवश्यक सेवा अवधि का कोई आधिकारिक प्रमाण मौजूद नहीं है।

न ही यह स्पष्ट है कि यह पद उन्हें विभागीय पदोन्नति से मिला या पीएससी से।

4. सबसे बड़ा सवाल यह की योगेश शिवहरे जब 15 वर्ष के थे तब प्राचार्य बने थे यदि वे वास्तव में 1994 में प्राचार्य बने थे, तो क्या उनकी पहली नियुक्ति उससे केवल 15 वर्ष पूर्व (यानी लगभग 1979) में हुई थी?

यह एक गंभीर प्रशासनिक प्रश्न है, क्योंकि यदि किसी व्यक्ति ने पर्याप्त सेवा अवधि पूरी किए बिना उच्च पद ग्रहण कर लिया, तो उस आधार पर दी गई समस्त पदोन्नतियाँ और वेतनमान प्रश्नवाचक हो जाते हैं।

यदि 1994 में प्राचार्य पद पर नियुक्ति का कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं है, और व्यक्ति उस समय तक आवश्यक अनुभव की पात्रता भी नहीं रखते थे, तो उनकी नियुक्ति नियमों के विरुद्ध हो सकती है।

ऐसे में 2025 में दिया गया तीसरा वेतनमान भी संदेह के घेरे में आता है।

शासन द्वारा इस पर पुनर्विचार या जांच की आवश्यकता हो सकती है।

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