अमेरिका–भारत व्यापार तनाव: ट्रम्प की टीम दिल्ली पहुंची, सुलह के संकेत
अमेरिका–भारत व्यापार तनाव: ट्रम्प की टीम दिल्ली पहुंची, सुलह के संकेत

अमेरिका–भारत व्यापार तनाव: ट्रम्प की टीम दिल्ली पहुंची, सुलह के संकेत
नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर चल रही तनातनी के बीच हलचल तेज हो गई है। मंगलवार को व्हाइट हाउस की एक उच्चस्तरीय टीम दिल्ली पहुंची और दोनों देशों के अधिकारियों के बीच दिनभर चली मैराथन बैठक के बाद माहौल कुछ नरम पड़ता दिखा। हालांकि कोई ठोस समझौता सामने नहीं आया, लेकिन बातचीत की सकारात्मक दिशा ने यह संकेत जरूर दिया कि दोनों देश टकराव की बजाय समाधान की ओर बढ़ना चाहते हैं।
विवाद की पृष्ठभूमि
भारत–अमेरिका रिश्तों में तनाव की शुरुआत तब हुई जब अगस्त में ट्रम्प प्रशासन ने भारत से आने वाले कई उत्पादों पर 25 से 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने का फैसला किया। अमेरिकी पक्ष का तर्क था कि भारत रूस से बड़े पैमाने पर सस्ता कच्चा तेल खरीद रहा है, जिससे अमेरिकी आर्थिक और रणनीतिक हित प्रभावित हो रहे हैं। इस कदम से भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान की आशंका जताई गई थी। खासतौर पर वस्त्र, गहनों और कृषि उत्पादों पर इसका असर ज्यादा दिख रहा है।
दिल्ली में हुई चर्चा
मंगलवार को दिल्ली में हुई वार्ता में चार अहम मुद्दों पर विस्तार से बातचीत हुई
1. टैरिफ की दरें और दायरा
2. अमेरिकी कंपनियों के लिए कृषि और डेयरी सेक्टर में अवसर
3. ऊर्जा और रक्षा खरीद समझौते
4. बहुपक्षीय मंचों जैसे WTO पर विवाद समाधान की संभावनाएँ
भारत सरकार ने वार्ता को “सकारात्मक और रचनात्मक” करार दिया और संकेत दिया कि दोनों देश आगे भी बातचीत जारी रखेंगे।
मोदी सरकार का रुख
भारत सरकार ने साफ किया कि किसानों और घरेलू उद्योगों के हित से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। हालांकि अमेरिका की चिंताओं को देखते हुए कुछ क्षेत्रों में टैरिफ कम करने पर विचार हो सकता है। साथ ही, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में अमेरिका से खरीद बढ़ाने की संभावनाएँ जताई गई हैं।
सबसे अहम बात यह रही कि भारत ने रूस से तेल आयात जारी रखने की अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर दिया। सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को देखते हुए यह नीति जारी रहेगी।
असर और चुनौतियाँ
भारतीय निर्यातकों का मानना है कि नए टैरिफ से वस्त्र, गहनों और कृषि उत्पादों पर सीधा असर पड़ेगा। इससे मुनाफे में गिरावट और रोजगार पर संकट खड़ा हो सकता है। दूसरी तरफ, अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन घरेलू उद्योगों और वोट बैंक को साधने के लिए सख्त रुख अपनाए हुए है।
विशेषज्ञों का मानना है कि समाधान आसान नहीं होगा क्योंकि दोनों तरफ घरेलू दबाव मौजूद हैं। भारत को किसानों और छोटे उद्योगों के हित देखने हैं तो अमेरिका को अपने घरेलू उद्योग और चुनावी राजनीति का संतुलन साधना है।
आगे का रास्ता
वार्ता के बाद तय हुआ कि आने वाले हफ्तों में तकनीकी स्तर की बैठकें आयोजित होंगी। रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में नए समझौते होने की संभावना जताई जा रही है। रणनीतिक साझेदारी की अहमियत को देखते हुए यह माना जा रहा है कि दोनों देश टकराव से बचकर किसी मध्यमार्ग की ओर बढ़ेंगे।
भारत–अमेरिका व्यापारिक रिश्ते
दोनों देशों के बीच सालाना द्विपक्षीय व्यापार फिलहाल लगभग 190 अरब डॉलर का है। इसमें भारत का अमेरिका को निर्यात करीब 115 अरब डॉलर है, जबकि आयात 75 अरब डॉलर के आसपास।
प्रभावित होने वाले उत्पाद
भारत से अमेरिका को निर्यात: गहने, वस्त्र, आईटी सेवाएँ, फार्मा और कृषि उत्पाद।
अमेरिका से भारत को आयात: विमान, रक्षा उपकरण, ऊर्जा (एलएनजी, कच्चा तेल) और उच्च तकनीकी मशीनें।
क्या दांव पर लगा है?
यह विवाद सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके गहरे रणनीतिक मायने हैं। भारत के लाखों निर्यातकों और श्रमिकों की नौकरियाँ दांव पर लगी हैं, वहीं अमेरिका के लिए एशिया में सबसे बड़े रणनीतिक सहयोगी भारत का भरोसा बनाए रखना बेहद जरूरी है।
रक्षा, ऊर्जा और तकनीकी साझेदारी दोनों देशों की सुरक्षा नीतियों का आधार है। यही कारण है कि विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत और अमेरिका को किसी न किसी समाधान की ओर जरूर बढ़ना होगा।
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