China-Russia-India partnership चीन-रूस-भारत की साझेदारी से अमेरिका में हलचल, ट्रंप के लिए बढ़ीं मुश्किलें

चीन-रूस-भारत की साझेदारी से अमेरिका में हलचल, ट्रंप के लिए बढ़ीं मुश्किलें

Sep 2, 2025 - 12:31
Sep 2, 2025 - 12:34
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China-Russia-India partnership चीन-रूस-भारत की साझेदारी से अमेरिका में हलचल, ट्रंप के लिए बढ़ीं मुश्किलें

चीन-रूस-भारत की साझेदारी से अमेरिका में हलचल, ट्रंप के लिए बढ़ीं मुश्किलें

नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इस समय सबसे बड़ी चर्चा का विषय भारत, चीन और रूस की बढ़ती नजदीकियां हैं। हाल ही में हुई उच्चस्तरीय बैठकों और रणनीतिक समझौतों के बाद यह साफ हो गया है कि तीनों एशियाई महाशक्तियां एक साझा मंच पर आ रही हैं। इस गठजोड़ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ट्रंप प्रशासन ने भारत पर भारी टैरिफ का बोझ डालकर दबाव बनाने की कोशिश की थी, लेकिन हालात ऐसे बने कि रूस और चीन की साझेदारी के साथ भारत ने समीकरण पूरी तरह पलट दिए।

ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी बनी सिरदर्द

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत भारत से आयात होने वाले कई उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक का टैरिफ बढ़ा दिया। उनका मानना था कि भारत झुकने को मजबूर हो जाएगा और अमेरिकी बाजार की शर्तें मान लेगा। लेकिन भारत ने इस फैसले का डटकर विरोध किया और घरेलू स्तर पर आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देते हुए वैकल्पिक व्यापार साझेदारों की ओर रुख किया। इस बीच रूस और चीन का सहयोग भारत के लिए एक रणनीतिक ढाल साबित हुआ।

रूस-भारत की पुरानी दोस्ती और चीन का नया रुख

भारत और रूस के बीच दशकों पुरानी दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। रक्षा सौदों, ऊर्जा परियोजनाओं और रणनीतिक साझेदारी ने हमेशा दोनों देशों को जोड़कर रखा है। वहीं चीन के साथ भारत के संबंध लंबे समय तक उतार-चढ़ाव भरे रहे, लेकिन वैश्विक राजनीति के बदलते परिदृश्य ने दोनों को सहयोग के नए रास्ते खोजने पर मजबूर किया।

हाल ही में चीन में हुई त्रिपक्षीय बैठक ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि भारत अब अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय एशियाई देशों के साथ संतुलन बनाकर आगे बढ़ना चाहता है। यही कारण है कि चीन भी भारत की तरफ सहयोग बढ़ाने के मूड में दिखा।

यूरोप की चिंता और वैश्विक समीकरण

भारत, रूस और चीन की जुगलबंदी केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि यूरोपीय देशों के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है। यूरोप लंबे समय से अमेरिका के सहयोगी के रूप में खड़ा रहा है, लेकिन वह भी समझता है कि एशिया की ये तीन ताकतें अगर एकजुट हो गईं तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और राजनीति में पश्चिमी देशों का दबदबा कमजोर पड़ जाएगा।

यूरोपीय संघ के नीति-निर्माता पहले से ही इस सवाल से जूझ रहे हैं कि एशियाई साझेदारी के सामने यूरोप अपनी रणनीति कैसे तय करे।

भारत की कूटनीतिक जीत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति इस पूरे घटनाक्रम में बेहद अहम रही है। उन्होंने एक तरफ अमेरिका से खुलकर टकराव से बचने की कोशिश की, वहीं दूसरी तरफ रूस और चीन को करीब लाकर भारत के लिए एक सुरक्षित विकल्प तैयार किया। मोदी सरकार की "मल्टी-एलाईन्स डिप्लोमेसी" ने भारत की स्थिति को मजबूत किया है।

भारत में आर्थिक विशेषज्ञों और आम जनता के बीच ट्रंप के फैसले को अमेरिका की बड़ी गलती बताया जा रहा है। लोगों का मानना है कि भारत पर टैरिफ का बोझ डालने से अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान झेलना पड़ेगा क्योंकि भारत अब वैकल्पिक साझेदारों की तलाश में सक्रिय है।

पाकिस्तान और बांग्लादेश पर असर

भारत, चीन और रूस के बढ़ते सहयोग का असर दक्षिण एशिया की राजनीति पर भी देखने को मिलेगा। पाकिस्तान और बांग्लादेश, जो भारत को अस्थिर करने के लिए आतंकवाद का सहारा लेते रहे हैं, अब पहले जैसी स्थिति में नहीं रह पाएंगे। चीन और रूस के साथ भारत की नजदीकियों से इन देशों की कूटनीतिक और रणनीतिक ताकत कमजोर पड़ सकती है।

अगर चीन भारत के साथ अपने संबंध मजबूत रखता है तो पाकिस्तान की "चीन कार्ड" रणनीति असफल हो जाएगी। वहीं रूस पहले से ही भारत का मित्र देश है, ऐसे में बांग्लादेश को भी भारत विरोधी नीतियों में उतना समर्थन नहीं मिलेगा जितना पहले मिलता था।

अमेरिका की दादागिरी पर ब्रेक?

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि यह गठबंधन अमेरिका की दशकों पुरानी दादागिरी को चुनौती दे सकता है। अब तक अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंधों और सैन्य शक्ति के दम पर कई देशों को झुकने पर मजबूर किया है। लेकिन अगर भारत, चीन और रूस एकजुट होकर विकल्प तैयार करते हैं, तो डॉलर पर निर्भरता घटेगी और अमेरिका की आर्थिक पकड़ ढीली होगी।

इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र, जी20 और अन्य वैश्विक मंचों पर भी इन देशों की संयुक्त आवाज अमेरिका के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है।

भारत के लिए नए अवसर

भारत इस गठजोड़ से न सिर्फ राजनीतिक बल्कि आर्थिक रूप से भी लाभान्वित हो सकता है।

रूस से सस्ती ऊर्जा और रक्षा सौदे भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगे।

चीन से तकनीकी सहयोग और व्यापार बढ़ने से उद्योगों को फायदा होगा।

एशियाई देशों के साझा बाजार में भारत की स्थिति और मजबूत हो सकती है।

भारत को यह भी अवसर मिलेगा कि वह अपने पड़ोसी देशों के साथ संतुलन साधते हुए खुद को एक "वैश्विक शक्ति" के रूप में स्थापित करे।

मायने

भारत, चीन और रूस की बढ़ती साझेदारी वैश्विक राजनीति में एक नया मोड़ लेकर आई है। अमेरिका के लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी भारत पर उलटी पड़ गई। अब दुनिया इस बात पर गौर कर रही है कि अगर एशियाई देश एकजुट हो गए तो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति संतुलन बदल जाएगा।

भारत ने इस मौके को सही रणनीति से भुनाकर न सिर्फ अमेरिका की दादागिरी को चुनौती दी है बल्कि अपने भविष्य के लिए नए अवसर भी तैयार किए हैं। यही कारण है कि भारत में इस फैसले का स्वागत किया जा रहा है और इसे प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक जीत माना जा रहा है।

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