Chief Justice's मुख्य न्यायाधीश गंवई को जूता मारने वाला वकील बना सनातन धर्म का हीरो हिंदू संगठनों ने जताई खुशी
मुख्य न्यायाधीश गवाही को जूता मारने वाला वकील बना सनातन धर्म का हीरो हिंदू संगठनों ने जताई खुशी
मुख्य न्यायाधीश गवाई पर वकील ने फेंका जूता, सनातन धर्म के अपमान पर देशभर में गूंजा विरोध – हिंदू संगठनों ने जताई खुशी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान सोमवार को एक अभूतपूर्व घटना हुई, जब वरिष्ठ वकील राकेश किशोर ने देश के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवाई पर जूता फेंक दिया। यह घटना उस वक्त हुई जब कोर्ट भगवान विष्णु की एक प्राचीन प्रतिमा से जुड़े विवाद की सुनवाई कर रहा था। वकील का आरोप था कि चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान भगवान विष्णु और सनातन धर्म को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की थी।
वकील ने लगाए नारे — “सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान”
घटना के दौरान कोर्ट रूम नंबर-1 में वकील राकेश किशोर ने जूता निकालकर चीफ जस्टिस की ओर फेंका और ज़ोर से नारा लगाया
“सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान!”
सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत वकील को पकड़ लिया और कोर्ट की कार्यवाही को अस्थायी रूप से रोक दिया गया। हालांकि, चीफ जस्टिस गवाई ने शांति बरकरार रखते हुए कहा कि “ऐसी घटनाएँ मुझे प्रभावित नहीं करतीं”, और सुनवाई फिर से शुरू की।
हिंदू संगठनों ने जताई खुशी, कहा – “अब सनातन का अपमान नहीं सहेंगे”
घटना के बाद पूरे देश में कई हिंदू संगठनों ने इस कदम का समर्थन किया। उनका कहना था कि यदि कोई व्यक्ति या संस्था सनातन धर्म और भगवान विष्णु के प्रति अपमानजनक बातें करेगा, तो उसका विरोध अब खुले रूप में किया जाएगा।
हिंदू युवा मंच, अखिल भारतीय संत परिषद और कई सामाजिक संगठनों ने बयान जारी कर कहा कि —
> “जो लोग सनातन धर्म के खिलाफ बोलते हैं, उन्हें अब यह समझ लेना चाहिए कि भारत की जनता अब चुप नहीं बैठेगी।”
सोशल मीडिया पर भी “#SanatanKaApmanNahiSahega” ट्रेंड करने लगा, जहाँ हजारों लोगों ने वकील राकेश किशोर को ‘सनातन का सिपाही’ कहकर सराहा।
बार काउंसिल ने की कार्रवाई, वकील पर लगा प्रतिबंध
वहीं दूसरी ओर, इस घटना पर Bar Council of India (BCI) ने सख्त रुख अपनाते हुए वकील राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।
बीसीआई ने कहा कि वकील का यह व्यवहार “अदालत की गरिमा के विरुद्ध” है और यह पेशेवर आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन है।
वकील को नोटिस जारी किया गया है, जिसमें उनसे पूछा गया है कि क्यों उनके खिलाफ आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई न की जाए। जब तक जांच पूरी नहीं होती, वे किसी भी कोर्ट या ट्रिब्यूनल में पेश नहीं हो सकेंगे।
जनता और सोशल मीडिया की मिली-जुली प्रतिक्रिया
इस घटना ने पूरे देश में एक नई बहस छेड़ दी है।
जहाँ हिंदू समुदाय और सनातन धर्म के समर्थक इसे धर्म की रक्षा की शुरुआत बता रहे हैं, वहीं न्यायिक जगत और वरिष्ठ वकीलों ने इस कृत्य को निंदनीय कहा है।
कई कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि —
> “न्यायपालिका में असहमति व्यक्त करने के भी कानूनी तरीके होते हैं, लेकिन अदालत के भीतर हिंसक या असम्मानजनक व्यवहार किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता।”
वहीं दूसरी तरफ आम जनता का एक वर्ग यह भी कह रहा है कि बार-बार सनातन धर्म के खिलाफ टिप्पणियाँ कर कुछ लोग धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं, और ऐसे में लोगों के भीतर आक्रोश और आत्मसम्मान की भावना स्वाभाविक है।
🔹 समाज में बढ़ी जागरूकता – “अब कोई भी सनातन को अपमानित नहीं करेगा”
घटना के बाद कई लोगों ने कहा कि अब देश में सनातन धर्म को लेकर एक नई जागरूकता की लहर आई है।
लोग अब यह मानने लगे हैं कि किसी भी पद या सत्ता पर बैठे व्यक्ति को धार्मिक मर्यादाओं का सम्मान करना चाहिए।
वकील राकेश किशोर ने गिरफ्तारी से पहले कहा था —
> “हिंदुस्तान अब सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा। जो लोग इस पवित्र परंपरा के खिलाफ बोलते हैं, वे याद रखें कि अब जनता जाग चुकी है।”
मायने
सुप्रीम कोर्ट में हुआ यह जूता कांड सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि देश के सामाजिक और धार्मिक वातावरण का आईना बन गया है।
एक तरफ यह न्यायपालिका की गरिमा को चुनौती देता है, तो दूसरी ओर यह संकेत भी देता है कि भारत में धर्म, आस्था और सम्मान से जुड़ी सीमाएँ कितनी संवेदनशील हैं।
इस घटना ने यह संदेश दिया है कि अब देश का हर नागरिक अपनी आस्था और संस्कृति के अपमान पर मौन नहीं रहेगा — बल्कि लोकतांत्रिक और सामाजिक दायरे में रहकर अपनी आवाज बुलंद करेगा।
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